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अद्भुत और शोभनीय विधि - "दीपावली पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त"
27 / Oct / 2021

अद्भुत और शोभनीय विधि - एक बार पढियेगा जरूर और कमेंट भी कीजियेगा। "दीपावली पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त"

Deepawali 04/11/2021

 

हर वर्ष भारतवर्ष में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। प्रतिवर्ष यह कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है। रावण से दस दिन के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते हैं तब उस दिन कार्तिक माह की अमावस्या थी, उस दिन घर-घर में दिए जलाए गए थे तब से इस त्योहार को दीवाली के रुप में मनाया जाने लगा और समय के साथ और भी बहुत सी बातें इस त्यौहार के साथ जुड़ती चली गई।

 

“ब्रह्मपुराण” के अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए। लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं।

 

दीपावली पूजन के लिए पूजा स्थल एक दिन पहले से सजाना चाहिए पूजन सामग्री भी दिपावली की पूजा शुरू करने से पहले ही एकत्रित कर लें। इसमें अगर माँ के पसंद को ध्यान में रख कर पूजा की जाए तो शुभत्व की वृद्धि होती है। माँ के पसंदीदा रंग लाल, व् गुलाबी है। इसके बाद फूलों की बात करें तो कमल और गुलाब मां लक्ष्मी के प्रिय फूल हैं। पूजा में फलों का भी खास महत्व होता है। फलों में उन्हें श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े पसंद आते हैं। आप इनमें से कोई भी फल पूजा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। अनाज रखना हो तो चावल रखें वहीं मिठाई में मां लक्ष्मी की पसंद शुद्ध केसर से बनी मिठाई या हलवा, शीरा और नैवेद्य है। माता के स्थान को सुगंधित करने के लिए केवड़ा, गुलाब और चंदन के इत्र का इस्तेमाल करें।

 

दीये के लिए आप गाय के घी, मूंगफली या तिल्ली के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मां लक्ष्मी को शीघ्र प्रसन्न करते हैं। पूजा के लिए अहम दूसरी चीजों में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र शामिल हैं।

 

चौकी सजाना :- (1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूक, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र

 

सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजा करने वाले मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अलावा एक दीपक गणेशजी के पास रखें। मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचों बीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें।

थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें :- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।

इन थालियों के सामने पूजा करने वाला बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।

 

हर साल दिवाली पूजन में नया सिक्का ले और पुराने सिक्को के साथ इकट्ठा रख कर दीपावली पर पूजन करे और पूजन के बाद सभी सिक्को को तिजोरी में रख दे।

 

पूजा की संक्षिप्त विधि स्वयं करने के लिए :-

पवित्रीकरण :- हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में नीचे दिया गया पवित्रीकरण मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें। शरीर एवं पूजा सामग्री पवित्रीकरण मन्त्र :- ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचिः॥ पृथ्वी पवित्रीकरण विनियोग :- पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥ अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें :- पृथ्वी पवित्रीकरण मन्त्र :- ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥ ॐ पृथिव्यै नमः ॐ आधारशक्तये नमः। अब आचमन करें :- पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए "ॐ केशवाय नमः" और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए "ॐ नारायणाय नमः" फिर एक बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए "ॐ माधवाय नमः" फिर हाथ धोते हुए बोलिए "ॐ ऋषिकेशाय नमः" इसके बाद संभव हो तो किसी किसी ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से पूजन करवाना अति लाभदायक रहेगा। ऐसा संभव ना हो तो सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन कर गणेश जी का ध्यान कर अक्षत पुष्प अर्पित करने के पश्चात दीपक का गंधाक्षत से तिलक कर निम्न मंत्र से पुष्प अर्पण करें।

 

शुभम करोतु कल्याणम, अरोग्यम धन संपदा, शत्रु-बुद्धि विनाशाय, दीपःज्योति नमोस्तुते ! इसके बाद संकल्प :- जिसके लिए पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2078, तमेऽब्दे राक्षस नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) गुरु वासरे स्वाति नक्षत्रे आयुष्मान योग चतुष्पाद/नाग करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामोहं (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्तर्थं निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर/चर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।

 

गणेश पूजन :- किसी भी पूजन की शुरुआत में सर्वप्रथम श्री गणेश को पूजा जाता है। इसलिए सबसे पहले श्री गणेश जी की पूजा करें। इसके लिए हाथ में पुष्प लेकर गणेश जी का ध्यान करें। मंत्र पढ़े :– गजाननम्भूतगणादिसेवितं, कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं, नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।। गणपति आवाहन :- ॐ गं गणपतये नम: इहागच्छ इह तिष्ठ।। इतना कहने के बाद पात्र में अक्षत छोड़ दे। इसके पश्चात गणेश जी को पंचामृत से स्नान करवाये पंचामृत स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान कराए अर्घा में जल लेकर बोलें - एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ॐ गं गणपतये नम:। रक्त चंदन लगाएं - इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ॐ गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ गं गणपतये नम:। दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को अर्पित करें। उन्हें वस्त्र पहनाएं और कहें – इदं रक्त वस्त्रं ॐ गं गणपतये समर्पयामि। पूजन के बाद श्री गणेश को प्रसाद अर्पित करें और बोले :– इदं नानाविधि नैवेद्यानि ॐ गं गणपतये समर्पयामि। मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र - इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ॐ गं गणपतये समर्पयामि। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें - इदं आचमनीयं ॐ गं गणपतये नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें - इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ॐ गं गणपतये समर्पयामि। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें - एष: पुष्पान्जलि ॐ गं गणपतये नम:।

 

इसी प्रकार अन्य देवताओं का भी पूजन करें बस जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश जी के स्थान पर उस देवता का नाम लें।

 

कलश पूजन :- इसके लिए लोटे या घड़े पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत व् मुद्रा रखें। कलश के गले में मोली लपेटे। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। अब हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देव का कलश में आह्वान करें। ॐ तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भी:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश गुं समान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकं आवाहयामि, ॐ भूर्भुव: स्व: भो वरुणं इहागच्छ इहतिष्ठ स्थापयामि पूजयामि॥) इसके बाद इस प्रकार श्री गणेश जी की पूजन की है उसी प्रकार वरुण देव की भी पूजा करें।

 

इसके बाद इंद्र और फिर कुबेर जी की पूजा करें। एवं वस्त्र सुगंध अर्पण कर भोग लगाये इसके बाद इसी प्रकार क्रम से कलश का पूजन कर लक्ष्मी पूजन आरम्भ करे लक्ष्मी पूजन :- सर्वप्रथम निम्न मंत्र कहते हुए माँ लक्ष्मी का ध्यान करें। ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।। अब माँ लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करें :- हाथ में अक्षत लेकर मंत्र कहें – “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीयं, स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं और मंत्र बोलें :– ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः। स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। इसके बाद मा लक्ष्मी के क्रम से अंगों की पूजा करें।

 

माँ लक्ष्मी की अंग पूजा :- बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाएं हाथ से थोड़े थोड़े छोड़ते जाए और मंत्र कहें – ॐ चपलायै नम: पादौ पूजयामि ॐ चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, ॐ कमलायै नम: कटि पूजयामि, ॐ कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, ॐ जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, ॐ विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, ॐ कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, ॐ कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ॐ श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।

 

अष्टसिद्धि पूजा :- अंग पूजन की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर मंतोच्चारण करते रहे। मंत्र इस प्रकर है – ॐ अणिम्ने नम:, ॐ महिम्ने नम:, ॐ गरिम्णे नम:, ॐ लघिम्ने नम:, ॐ प्राप्त्यै नम: ॐ प्राकाम्यै नम:, ॐ ईशितायै नम: ॐ वशितायै नम:।

 

अष्टलक्ष्मी पूजन :- अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की ही तरह हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें। ॐ आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम:, ॐ सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ॐ अमृत लक्ष्म्यै नम:, ॐ लक्ष्म्यै नम:, ॐ सत्य लक्ष्म्यै नम:, ॐ भोगलक्ष्म्यै नम:, ॐ योग लक्ष्म्यै नम: । नैवैद्य अर्पण :- पूजन के बाद देवी को “इदं नानाविधि नैवेद्यानि ॐ महालक्ष्म्यै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ॐ महालक्ष्म्यै समर्पयामि” बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ॐ महालक्ष्म्यै नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूलं पुगीफलं समायुक्तं ॐ महालक्ष्म्यै समर्पयामि। अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ॐ महालक्ष्म्यै। माँ को यथा सामर्थ वस्त्र, आभूषण, नैवेद्य अर्पण कर दक्षिणा चढ़ाए दूध, दही, शहद, देसी घी और गंगाजल मिलकर चरणामृत बनाये और गणेश लक्ष्मी जी के सामने रख दे। इसके बाद 5 तरह के फल, मिठाई खील-पताशे, चीनी के खिलोने लक्ष्मी माता और गणेश जी को चढ़ाये और प्राथना करे की वो हमेशा हमारे घरो में विराजमान रहे। इनके बाद एक थाली में विषम संख्या में दीपक 11,21 अथवा यथा सामर्थ दीप रख कर इनको भी कुंकुम अक्षत से पूजन करे इसके बाद माँ को श्री सूक्त अथवा ललिता सहस्त्रनाम का पाठ सुनाये पाठ के बाद माँ से क्षमा याचना कर माँ लक्ष्मी जी की आरती कर बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के बाद थाली के दीपो को घर में सब जगह रखे। लक्ष्मी-गणेश जी का पूजन करने के बाद, सभी को जो पूजा में शामिल हो, उन्हें खील, पताशे, चावल दे। सब फिर मिल कर प्राथना करे की माँ लक्ष्मी हमने भोले भाव से आपका पूजन किया है ! उसे स्वीकार करे और गणेशा, माँ सरस्वती और सभी देवताओं सहित हमारे घरो में निवास करे। प्रार्थना करने के बाद जो सामान अपने हाथ में लिया था वो मिटटी के लक्ष्मी गणेश, हटड़ी और जो लक्ष्मी गणेश जी की फोटो लगायी थी उस पर चढ़ा दे। लक्ष्मी पूजन के बाद आप अपनी तिजोरी की पूजा भी करे रोली को देसी घी में घोल कर स्वस्तिक बनाये और धुप दीप दिखा करे मिठाई का भोग लगाए। लक्ष्मी माता और सभी भगवानो को आपने अपने घर में आमंत्रित किया है अगर हो सके तो पूजन के बाद शुद्ध बिना लहसुन-प्याज़ का भोजन बना कर गणेश-लक्ष्मी जी सहित सबको भोग लगाए।

 

दीपावली पूजन के बाद आप मंदिर, गुरद्वारे और चौराहे में भी दीपक और मोमबतियां जलाएं। रात को सोने से पहले पूजा स्थल पर मिटटी का चार मुह वाला दिया सरसो के तेल से भर कर जगा दे और उसमे इतना तेल हो की वो सुबह तक जग सके माँ

 

लक्ष्मी जी की आरती :-

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता तुम को निस दिन सेवत, मैयाजी को निस दिन सेवत हर विष्णु विधाता ... ॐ जय लक्ष्मी माता ...

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता ओ मैया तुम ही जग माता ... सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॐ जय लक्ष्मी माता ...

दुर्गा रूप निरन्जनि, सुख सम्पति दाता ओ मैया सुख सम्पति दाता ... जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता ॐ जय लक्ष्मी माता ...

तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाता ओ मैया तुम ही शुभ दाता ... कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता ॐ जय लक्ष्मी माता ... जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता ओ मैया सब सद्गुण आता ... सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता ॐ जय लक्ष्मी माता ...

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता ओ मैया वस्त्र न कोई पाता ... ख़ान पान का वैभव, सब तुम से आता ॐ जय लक्ष्मी माता ...

शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता ओ मैया क्षीरोदधि जाता ... रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॐ जय लक्ष्मी माता ...

महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता ओ मैया जो कोई जन गाता ... उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॐ जय लक्ष्मी माता ...

 

दीपावली पूजन मुहूर्त :- दीपावली पूजन के लिये चार विशेष मुहूर्त होते है।

1. वृश्चिक लग्न :- यह लग्न दीपावली के सुबह आती है वृश्चिक लग्न में मंदिर, स्कूल, हॉस्पिटल, कॉलेज आदि में पूजा होती है। राजनीति से जुड़े लोग एवं कलाकार आदि इसी लग्न में पूजा करते हैं।

2. कुंभ लग्न :- यह दीपावली की दोपहर का लग्न होता है। इस लग्न में प्राय बीमार लोग अथवा जिन्हें व्यापार में काफी हानि हो रही है, जिनकी शनि की खराब महादशा चल रही हो उन्हें इस लग्न में पूजा करना शुभ रहता है।

3. वृषभ लग्न :- यह लग्न दीपावली की शाम को बढ़ाएं मिल ही जाता है तथा इस लग्न में गृहस्थ एवं व्यापारीयो को पूजा करना सबसे उत्तम माना गया है।

4. सिंह लग्न :- यह लग्न दीपावली की मध्यरात्रि के आस पास पड़ता है तथा इस लग्न में तांत्रिक, सन्यासी आदि पूजा करना शुभ मानते हैं।

 

अमावस्या तिथि प्रारंभ 04 नवम्बर 2021 06:03 AM से, अमावस्या तिथि समाप्त 05 नवम्बर 2021 02:44 AM तक

 

चौघड़िया मुहूर्त :- सुबह का मुहूर्त :- 06:40 AM से 08:06 AM तक शुभ, 10:56 AM से 03:13 PM तक चल , लाभ, अमृत

दोपहर का मुहूर्त :- 04:38 PM से 06:04 PM तक शुभ

शाम का मुहूर्त :- 06:04 PM से 09:13 PM तक अमृत, चर,

रात का मुहूर्त :- 12:22 AM से 01:57 AM तक लाभ 05 नवम्बर

निशीथ काल :- 04 नवम्बर रात्रि को 11:57 PM से 12:47AM 5 नवम्बर तक निशिथ काल रहेगा।

प्रदोष काल :- 06:04 PM से 08:35PM तक

वृषभ लग्न :- 06:42 PM से 08:42PM तक

सिंह लग्न :- 01:08 AM से 03:16 AM तक

 

महानिशीथ काल :- महानिशीथ काल मे धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए। श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य वैदिक तांत्रिक मंन्त्रों का जपानुष्ठान किया जाता है।