Varsh Kundali / वर्ष कुण्डली
Varsh Kundali / वर्ष कुण्डली / वर्षफल
वर्ष फल पद्धति अपने आप में एक महत्वपूर्ण पद्धति है। वर्ष फल के द्वारा हम एक वर्ष में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगा सकते हैं।
वर्ष फल कुण्डली में ग्रहों की आपसी दृष्टियाँ पराशरी दृष्टि से भिन्न होती हैं। यहाँ हम ताजिक दृष्टियों का प्रयोग करते हैं। वर्ष कुण्डली में 3,5,9,11 भावों में स्थित ग्रहों की आपसी दृष्टि मित्र दृष्टि कहलाती है। 2,6,8,12 भावों में स्थित ग्रहों की आपसी दृष्टि सम दृष्टि कहलाती है। 1,4,7,10 भावों में स्थित ग्रहों की आपसी दृष्टि शत्रु दृष्टि कहलाती है।
वर्ष फल में ताजिक योगों का बहुत ज्यादा महत्व है। यह ताजिक योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार से बनते हैं। योग तो बहुत से हैं लेकिन सोलह योगों का महत्व अधिक है। जो निम्न लिखित हैं -
- इक्कबाल योग
- इन्दुवार योग
- इत्थशाल योग
- ईशराफ योग
- नक्त योग
- यमया योग
- मणऊ योग
- कम्बूल योग
- गैरी कम्बूल योग
- खल्लासर योग
- रद्द योग
- दुष्फाली कुत्थ योग
- दुत्थकुत्थीर योग
- ताम्बीर योग
- कुत्थ योग
- दुरुफ योग
वर्ष कुण्डली में मुन्था का भी महत्व काफी है। मुन्था को हम ग्रह के जैसे मानते हैं। वर्ष कुण्डली में जिस भाव में मुन्था स्थित होती है उस भाव तथा भाव के स्वामी कि स्थिति को देखा जाता है। बली हैं या निर्बल है। 4,6,7,8,12 भाव में मुन्था का स्थित होना शुभ नहीं माना जाता है। इसी प्रकार हम वर्ष कुण्डली में वर्षेश तथा पंचाधिकारियों की स्थिति को भी देखते हैं। वर्षेश की स्थिति कुण्डली में यदि कमजोर है तो शुभ नहीं है। इनके अलावा त्रिपताकी चक्र का निर्माण भी किया जाता है। इसके आधार पर भी वर्ष कुण्डली का फलित किया जाता है। वर्ष कुण्डली में सहम का भी महत्व है। यदि अच्छे सहम बन रहें हैं तो फल अच्छे मिल सकते हैं।
वर्ष कुण्डली में तीन प्रकार की दशाओं का प्रयोग किया जाता है। प्रथम दशा विंशोत्तरी मुद्दा दशा है। द्वितीय दशा विंशोत्तरी योगिनी दशा है। तृ्तीय दशा सबसे महत्वपूर्ण दशा है जो पात्यायनी दशा कहलाती है। मुद्दा दशा और योगिनी दशा की गणना पराशरी गणना के जैसी है लेकिन पात्यायनी दशा की गणना इनसे भिन्न है, इस दशा में वर्ष कुण्डली में ग्रहों के भोगांश के आधार पर दशा क्रम निश्चित किया जाता है।
वर्ष कुण्डली में विंशोपक बल या विश्व बल की गणना का भी महत्व होता है। यह बल राहु/केतु को छोड़कर सात ग्रहों पर आधारित होता है। इस बल को हम गणितीय विधि से निकालते हैं। इस बल के अधिकतम अंक 20 होते हैं। जिस ग्रह के 15 से 20 के मध्य बल है वह बहुत बली हो जाता है। जो ग्रह 10 से 15 के मध्य बल पाता है वह बली होता है। जो 5 से 10 के मध्य बल पाता है वह ग्रह निर्बल होता है। 5 से नीचे बल प्राप्त करने वाला बहुत अधिक कमजोर होता है।
उपरोक्त नियमों के आधार पर वर्ष कुण्डली का निर्माण होता है। वर्ष फल कुण्डली का अपना स्वतंत्र रूप से कोई महत्व नहीं है। यदि व्यक्ति की जन्म कुण्डली में कोई अच्छा योग नहीं है और वर्ष कुण्डली उस वर्ष में अच्छे योग दिखा रही है तोवर्ष कुण्डली के अच्छे फलों का कोई महत्व नहीं होगा।