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भगवान परशुराम जन्मोत्सव एवं ‘कोरोना’ महामारी के नाश का उपाय
24 / Apr / 2020

भगवान परशुराम जन्मोत्सव 25/04/2020 एवं ‘कोरोना’ महामारी के नाश का उपाय


Dr. Rajkumar Sharma Astro

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“भगवान परशुराम जी के जन्मोत्सव” की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मैं आप सभी से ये अनुरोध करता हूँ की क्यों नहीं इस दिन सूर्यास्त के बाद सांय 07:30 बजे 1,3,5,7,9 अथवा अधिकतम 11 दीपकों (यथासंभव घी के दीपकों) द्वारा भगवान परशुराम की आरती अथवा ध्यान करके उन दीपकों को घर के द्वार पर अथवा बालकनी में रख दें। और भगवान परशुराम से प्रार्थना करें कि “ हे प्रभु इस सम्पूर्ण विश्व को कोरोना नामक महामारी से छुटकारा दिलायें , आपकी महती कृपा होगी।”

 

श्री परशुराम जी त्रेता युग के ब्राह्मण थे और उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार कहां जाता है। भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत मैं हुआ। शिव जी द्वारा प्रदान परशु धारण किये रहने के कारण यह परशुराम के लाए कहलाए। परशुराम जी शस्त्रविद्या के महान गुरु थे,उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी ।

 

ध्यान श्लोक

ॐ भृगुदेव कुलं भानुं, सहस्रबाहुर्मर्दनम् ।
रेणुका नयनानंदं, परशुं वन्दे विप्रधनम् ।।

 

श्री परशुराम गायत्री

ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुरामः प्रचोदयात् ।।

 

ॐ श्री परशुराम चालीसा ॐ

दोहा

श्री गुरु चरण सरोज छवि, निज मन मंदिर धारी ।
सुमरि गजानन शारदा, गहि आशिष त्रिपुरारि ।।
बुद्धिहीन जन जानिये, अवगुणों का भण्डार ।
चरणौं परशुराम सुयश, निज मति के अनुसार ।।

चौपाई

जय प्रभु परशुराम सुख सागर ।
जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर ।।
भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा।
क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा।।
जमदग्नी सुत रेणुका जाया।
तेज प्रताप सकल जग छाया ।।
मास बैशाख सित पच्छ उदारा।
तृतीया पुनर्वसु मनुहारा ।।
प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा।
तिथि प्रदोष ब्यापि सुखधामा।।
तब ॠषि कुटीर रुदन शिशु कीन्हा।
रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा ।।
निज घर उच्च ग्रह छः ठाड़े।
मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े।।
तेज ज्ञान मिल नर तनु धारा।।
जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा।।
धरा राम शिशु पावन नामा ।
नाम जपत जग लह विश्रामा ।।
भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर ।
कांधे मूंज जनेउ मनहर ।।
मंजु मेखला कटि मृगछाला ।
रूद्र माला बर वक्ष बिशाला ।।
पीत बसन सुन्दर तनु सोहें ।
कंध तुणीर धनुष मन मोहें।।
वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता ।
क्रोध रूप तुम जग विख्याता ।।
दायें हाथ श्रीपरशु उठावा।
वेद-संहिता बायें सुहावा ।।
विद्यावान गुण ज्ञान अपारा ।
शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा ।।
भुवन चारिदस अरु नवखंडा ।
चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा ।
एक बार गणपति के संगा ।
जुझे भृगुकुल कमल पतंगा ।।
दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा ।
एक दन्त गणपति भयो नामा ।।
कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला ।
सहस्रबाहु दुर्जन बिकराला ।।
सूरगऊ लखि जमदग्नी पांही ।
रखिहहुं निज घर ठानि मन मांही ।।
मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई ।
भयो पराजित जगत हंसाई ।।
तन खल ह्रदय भई रिस गाढ़ी ।
रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी ।।
ॠषिवर रहे ध्यान लवलीना ।
तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा ।।
लगत शक्ति जमदग्नी निपाता ।
मनहुं क्षत्रिकुल बाम विधाता । ।
पितु-बध मातु-रुदन सुनि भारा।
भा अति क्रोध मन शोक अपारा ।।
कर गहि तीक्षण परशु कराला ।
दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला ।।
क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा ।
पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा ।।
इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी ।
छीन धरा विप्रन्ह कहूँ दीनी ।।
जुग त्रेता कर चरित सुहाई ।
शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई ।।
गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना।
तब समूल नाश ताहि ठाना ।।
कर जोरि तब राम रघुराई ।
विनय कीन्ह पुनि शक्ति दिखाई ।।
भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता ।
भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता । ।
शस्त्र विद्या देह सुयश कमावा।
गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा ।।
चारों युग तव महिमा गाई ।
सुर मुनि मनुज दनुज समुदाई ।।
दे कश्यप सों संपदा भाई ।
तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई ।।
अब लौं लीन समाधि नाथा ।
सकल लोक नावइ नित माथा ।।
चारों वर्ण एक सम जाना ।
समदर्शी प्रभु तुम भगवाना ।।
लहहिं चारि फल शरण तुम्हारी ।
देव दनुज नर भूप भिखारी ।।
जो यह पढ़े श्री परशु चालीसा ।
तिन्ह अनुकूल सदा गौरीशा ।।
पूर्णेन्दु निसि बासर स्वामी ।
बसहु ह्रदय प्रभु अन्तरयामी ।।

दोहा

परशुराम को चारू चरित, मेटत सकल अज्ञान ।
शरण पड़े को देत प्रभु, सदा सुयश सम्मान ।।

 

।।परशुराम आरती।।1।।

ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी

जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया।
मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी

कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला।
चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी

ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी।
सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी

मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना।
दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी

कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता।
कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी

माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे।
मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी

अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे।
पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी

ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी

 

।।परशुराम आरती।।2।।

आरती श्री परशुराम जी की
शौर्य तेज बल-बुद्घि धाम की॥

रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन।
कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥

अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥1॥

नारायण अवतार सुहावन।
प्रगट भए महि भार उतारन॥

क्रोध कुंज भव भय विराम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥2॥

परशु चाप शर कर में राजे।
ब्रम्हसूत्र गल माल विराजे॥

मंगलमय शुभ छबि ललाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥3॥

जननी प्रिय पितु आज्ञाकारी।
दुष्ट दलन संतन हितकारी॥

ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥4॥

परशुराम वल्लभ यश गावे।
श्रद्घायुत प्रभु पद शिर नावे॥

छहहिं चरण रति अष्ट याम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥5॥