Mahashivratri 2020: 21 फरवरी को है महाशिवरात्रि, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व
Dr. Rajkumar Sharma Astro
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इस वर्ष 2020 में महाशिवरात्रि का पवित्र पर्व 21 फरवरी को आ रहा है। भगवान भोलेनाथ शिव शंकर को प्रसन्न करने का यह शुभ दिन सभी हिन्दू भक्तों के लिए विशेष होता है।
क्यों मनाई जाती है शिवरात्रि ?
मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि की रात को ही भगवान शिव शंकर और माता शक्ति का विवाह संपन्न हुआ था।
महाशिवरात्रि की तिथि और शुभ मुहूर्त :-
महाशिवरात्रि की तिथि: 21 फरवरी 2020
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 21 फरवरी r2020 को शाम 5 बजकर 20 मिनट से
चतुर्दशी तिथि समाप्त: 22 फरवरी 2020 को शाम 7 बजकर 2 मिनट तक
चुंकि 22 तारीख को पंचक प्रारंभ हो रहा है असलिए 21 फरवरी को ही महाशिवरात्रि मनाई जाएगी।
रात्रि प्रहर की पूजा का समय: 21 फरवरी 2020 को शाम 6 बजकर 18 मिनट से......
महाशिवरात्रि 21 फरवरी 2020 चार प्रहर पूजन समय:- प्रथम प्रहर :- सायं 6-18 से रात्रि 9-28बजे तक
द्वितीय प्रहर :-रात्रि 9-29 से 12-39 बजे तक
तृतीय प्रहर :-मध्यरात्री 12-40 से 3-50 बजे तक
चतुर्थ प्रहर :-मध्यरात्रि 3-51से अगले दिन प्रातः 07-02 बजे तक
अगले दिन सुबह मंदिरों में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाएगी। हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को सिर्फ शिवरात्रि कहा जाता है।
पूजन सामग्री :-
महाशिवरात्रि के व्रत से एक दिन पहले ही पूजन सामग्री एकत्रित कर लें, जो इस प्रकार है: शमी के पत्ते, सुगंधित पुष्प, बेल पत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, चंदन, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, रोली, मौली, जनेऊ, पंच मिष्ठान, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, दक्षिणा, पूजा के बर्तन आदि.
महाशिवरात्रि की पूजन विधि :-
- महाशिवरात्रि के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें.
- इसके बाद शिव मंदिर जाएं या घर के मंदिर में ही शिवलिंग पर जल चढ़ाएं.
- जल चढ़ाने के लिए सबसे पहले तांबे के एक लोटे में गंगाजल लें. अगर ज्यादा गंगाजल न हो तो सादे पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाएं.
- अब लोटे में चावल और सफेद चंदन मिलाएं और "ऊं नम: शिवाय" बोलते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं.
- जल चढ़ाने के बाद चावल, बेलपत्र, सुगंधित पुष्प, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, मौली, जनेऊ और पंच मिष्ठान एक-एक कर चढ़ाएं.
- अब शमी के पत्ते चढ़ाते हुए ये मंत्र बोलें:
अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।
दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम्।।
- शमी के पत्ते चढ़ाने के बाद शिवजी को धूप और दीपक दिखाएं.
- फिर कर्पूर से आरती कर प्रसाद बांटें.
- शिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण करना फलदाई माना जाता है.
- शिवरात्रि का पूजन 'निशीथ काल' में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है. रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है. हालांकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से किसी भी एक प्रहर में सच्ची श्रद्धा भाव से शिव पूजन कर सकते हैं.
पूजा का मंत्र :-
महाशिवरात्रि के दिन शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जाप करना चाहिए.
बेलपत्र चढ़ाने का मंत्र
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
महाशिवरात्रि की पौराणिक व्रत कथा :-
महाशिवरात्रि का पावन पर्व इस साल 21 फरवरी को मनाया जायेगा। अन्य शिवरात्रि से इस महाशिवरात्रि को क्यों माना गया है खास इसके महत्व को जानने के लिए इस पौराणिक कथा को जानना जरूरी है जिसके अनुसार प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। वह जानवरों की हत्या करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर चुका न सका। इससे क्रोधित साहूकार ने चित्रभानु को पकड़कर कैद कर लिया। संयोग से उस दिन महाशिवरात्रि थी।
मुश्किल में फंसे शिकारी ने भगवान शिव का स्मरण करते-करते सारा दिन गुजार दिया। कहते हैं अगले दिन चतुर्दशी को पास में हो रही भगवान शिव की कथा भी सुनी। तभी शाम तक साहूकार आया और उससे अगले दिन तक कर्ज चुकाने की बात कर मुक्त कर दिया। इधर भूख-प्यास से व्याकुल शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह एक तालाब के किनारे बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।
बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जिस पर शिकारी के द्वारा तोड़े हुए बिल्व पत्र गिर रहे थे। शिकारी को इस बात की खबर नहीं थी। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। रात्रि बीतते ही एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची। कि तभी शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर उसका शिकार करने लगा। तभी हिरणी बोली, ‘मैं गर्भवती हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। एक साथ दो जीवों की हत्या करना ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मुझे अपना शिकार बना लेना।
शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया। कुछ दिनों के इंतजार के बाद हिरणी वहां से गुजरी कि शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने निवेदन किया, ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ शिकारी को दया आ गई और वह इस बार भी उसे जाने दिया।
वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। वहीं कुछ देर बाद हिरणी फिर से वापस आई तो शिकारी फिर से उसे अपना शिकार बनाना चाहा लेकिन हिरणी ने कहा, मैं अपने बच्चों को उसके पिता के पास छोड़ दूं इसके बाद मुझे शिकार बनाना। लेकिन इस बार शिकारी मानने को तैयार न हुआ। बोला मैंने पहले भी तुम्हें दो बार छोड़ चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे। उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके।, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।
अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।