Padmini Ekadashi 2020 : रविवार को है पद्मिनी एकादशी,सूर्य देव और भगवान विष्णु की पूजा से मिलेंगे विशेष फल
अधिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी 27 सितंबर को है। अधिकमास में पड़ने वाली एकादशी को कमला एकादशी, पद्मिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी का बहुत महत्व होता है। एकादशी तिथि 26 सितंबर को सांय 07:00 बजे शुरू होगी और एकादशी तिथि 27 सितंबर को सांय 07:46 मिनट पर समाप्त होगी।
अधिकमास भगवान विष्णु का मास है। इसलिए इस महीने में भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इस व्रत को करने वाला हर प्रकार के दुखों से छूट जाता है और अंत में उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। आपको बता दें कि यह एकादशी रविवार को पड़ रही है, इसलिए इसका महत्व औऱ भी बढ़ गया है। आपको बता दें कि जिस तरह अधिकमास तीन साल में एक बार आता है, उसी प्रकार यह एकादशी भी तीन साल में एक बार आती है।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के साथ सूर्यदेव का भी विशेष पूजन अर्चन हो जाएगा। अधिकमास में इस एकादशी व्रत का महत्व तो स्वंय भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर और अर्जुन को बताया था।ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा एक साथ करने जीवन में कई परेशानियों का अंत होता है। इस दिन सुबह उठकर सच्चे मन से व्रत का संकल्प लेकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होने के बाद भगवान श्री हरि जी की धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं मौसमी फलों से पूजा करें। पंचामृत से भगवान को स्नान कराएं। पूरे दिन निराहार व्रत रखें। आप फलाहार कर सकते हैं।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा :-
त्रेयायुग में महिष्मती पुरी के राजा थे कृतवीर्य। वे हैहय नामक राजा के वंश थे। कृतवीर्य की एक हजार पत्नियां थीं, लेकिन उनमें से किसी से भी कोई संतान न थी। उनके बाद महिष्मती पुरी का शासन संभालने वाला कोई न था। इसको लेकर राजा परेशान थे। उन्होंने हर प्रकार के उपाय कर लिए लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। इसके बाद राजा कृतवीर्य ने तपस्या करने का निर्णय लिया। उनके साथ उनकी एक पत्नी पद्मिनी भी वन जाने के लिए तैयार हो गईं। राजा ने अपना पदभार मंत्री को सौंप दिया और योगी का वेश धारण कर पत्नी पद्मिनी के साथ गंधमान पर्वत पर तप करने निकल पड़े।
कहा जाता है कि पद्मिनी और कृतवीर्य ने 10 हजार साल तक तप किया, फिर भी पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। इसी बीच अनुसूया ने पद्मिनी से मलमास के बारे में बताया। उसने कहा कि मलमास 32 माह के बाद आता है और सभी मासों में महत्वपूर्ण माना जाता है. उसमें शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। श्रीहरि विष्णु प्रसन्न होकर तुम्हें पुत्र रत्न अवश्य देंगे। पद्मिनी ने मलमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विधि विधान से किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। उस आशीर्वाद के कारण पद्मिनी के घर एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम कार्तवीर्य रखा गया। पूरे संसार में उनके जितना बलवान कोई न था।
भूलकर भी ना करें ये पाँच काम
१.एकादशी के दिन चावल का सेवन न करें :- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के पावन दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल का सेवन करने से मनुष्य का जन्म रेंगने वाले जीव की योनि में होता है। इस दिन जो लोग व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
२.एकादशी के दिन महिलाओं का अपमान नहीं करना चाहिए :- एकादशी के दिन महिलाओं का अपमान करने से व्रत का फल नहीं मिलता है। सिर्फ एकादशी के दिन ही नहीं व्यक्ति को किसी भी दिन महिलाओं का अपमान नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति महिलाओं का सम्मान नहीं करते हैं उन्हें जीवन में कई तरहों की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
३.एकादशी के दिन मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए :- एकादशी के पावन दिन मांस- मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन ऐसा करने से जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस दिन व्रत करना चाहिए। अगर आप व्रत नहीं करते हैं तो एकादशी के दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
४.एकादशी के दिन गुस्सा न करें :- एकादशी का पावन दिन भगवान विष्णु की अराधना का होता है, इस दिन सिर्फ भगवान का गुणगान करना चाहिए। एकादशी के दिन गुस्सा नहीं करना चाहिए और वाद-विवाद से दूर रहना चाहिए।
५.एकादशी के दिन शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए :- एकादशी के दिन शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए, इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।