Dhanteras and Roop Chaturdashi 2020 : धनतेरस और रूप चतुर्दशी पर असमंजस, जानें किस दिन क्या करें
धनतेरस 13 नवंबर 2020
धन तेरस यह पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन कुछ नया खरीदने की परंपरा है। विशेषकर पीतल व चांदी के बर्तन खरीदने का रिवाज़ है। मान्यता है कि इस दिन जो कुछ भी खरीदा जाता है उसमें लाभ होता है। धन संपदा में वृद्धि होती है। इसलिये इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धन्वंतरि भी इसी दिन अवतरित हुए थे इसी कारण इसे धन तेरस कहा जाता है। देवताओं व असुरों द्वारा संयुक्त रूप से किये गये समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए चौदह रत्नों में धन्वन्तरि व माता लक्ष्मी शामिल हैं। यह तिथि धनत्रयोदशी के नाम से भी जानी जाती है|
इस दिन लक्ष्मी के साथ धन्वन्तरि की पूजा की जाती है| दीपावली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है| दीपोत्सव का आरंभ धनतेरस से होता है| जैन आगम (जैन साहित्य प्राचीनत) में धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' कहते हैं| मान्यता है, भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे| तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त हुये| तभी से यह दिन जैन आगम में धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ| धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है|
धनतेरस पर क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन :-
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुंद्र मंथन से धन्वन्तरि प्रकट हुए| धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था| भगवान धन्वन्तरी कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है| विशेषकर पीतल और चाँदी के बर्तन खरीदना चाहिए, क्योंकि पीतल महर्षि धन्वंतरी का धातु है| इससे घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ होता है| धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर और यमदेव की पूजा अर्चना का विशेष महत्त्व है| इस दिन को धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है|
धनतेरस पर दक्षिण दिशा में दीप जलाने का महत्त्व:-
धनतेरस पर दक्षिण दिशा में दिया जलाया जाता है। इसके पिछे की कहानी कुछ यूं है। एक दिन दूत ने बातों ही बातों में यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यमदेव ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दिया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती| इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं| फलस्वरूप उपासक और उसके परिवार को मृत्युदेव यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है| विशेषरूप से यदि घर की लक्ष्मी इस दिन दीपदान करें तो पूरा परिवार स्वस्थ रहता है|
धनतेरस पूजा विधि :-
संध्याकाल में पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है| पूजा के स्थान पर उत्तर दिशा की तरफ भगवान कुबेर और धन्वन्तरि की मूर्ति स्थापना कर उनकी पूजा करनी चाहिए| इनके साथ ही माता लक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश की पूजा का विधान है| ऐसी मान्यता है कि भगवान कुबेर को सफेद मिठाई, जबकि धनवंतरि को पीली मिठाई का भोग लगाना चाहिए | क्योंकि धन्वन्तरि को पीली वस्तु अधिक प्रिय है| पूजा में फूल, फल, चावल, रोली, चंदन, धूप व दीप का इस्तेमाल करना फलदायक होता है| धनतेरस के अवसर पर यमदेव के नाम से एक दीपक निकालने की भी प्रथा है| दीप जलाकर श्रद्धाभाव से यमराज को नमन करना चाहिए|
धनतेरस पर्व तिथि व मुहूर्त 13 नवंबर 2020
धनतेरस तिथि - शुक्रवार, 13 नवंबर 2020
धनतेरस पूजन मुर्हुत - शाम 05:25 बजे से शाम 05:59 बजे तक
प्रदोष काल - शाम 05:25 से रात 08:06 बजे तक
वृषभ काल - शाम 05:33 से शाम 07:29 बजे तक
रूप चौदस 13 नवंबर 2020
धनतेरस से 5 दिनों तक चलने वाला दिवाली पर्व आरंभ होता है, जो भाई दूज पर समाप्त होता है। इसमें सबसे पहले दिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है जिसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। बहुत से लोग त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिव की उपासना धनतेरस के दिन करते हैं जबकि बहुत से लोग चतुर्दशी तिथि को मास शिवरात्रि का व्रत रखकर नरक चतुर्दशी का व्रत करते हैं। लेकिन इस बात तिथियों के उलझन की वजह से कनफ्यूजन की स्थिति है कि किस दिन त्रयोदशी का व्रत रखें और किस दिन चतुर्दशी का व्रत करें। इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले त्रयोदशी और चतुर्दशी तिथि के मुहूर्त को समझना होगा।
ग्रह नक्षत्रों की गणना से मालूम होता है कि इस वर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि का आरंभ 12 नवंबर दिन गुरुवार को रात 9 बजकर 30 मिनट पर हो रहा है और 13 नवंबर दिन शुक्रवार को शाम 5 बजकर 59 मिनट तक धन त्रयोदशी तिथि रहेगी। उदया तिथि और प्रदोष काल में त्रयोदशी तिथि होने के कारण 13 नवंबर दिन शुक्रवार को धनतेरस मनाया जाना शुभ रहेगा और इसी दिन प्रदोष व्रत करना भी शुभ फलदायी होगा।
जानें धनतेरस पर क्यों करते हैं यमराज के लिए दीपदान :-
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि का आरंभ 13 नवंबर दिन शुक्रवार को शाम 5 बजकर 59 मिनट पर हो रहा है। चतुर्दशी तिथि 14 नवंबर दिन शनिवार को दिन में 2 बजकर 18 मिनट तक रहेगी। शास्त्रों में बताया गया है सूर्योदय के समय जिस जिन चतुर्दशी तिथि लग रही हो उसी दिन रूप चतुर्दशी का स्नान सूर्योदय से पू्र्व करना चाहिए। इससे मृत्यु के बाद यमलोक के दर्शन नहीं होते और रूप सौंदर्य की प्राप्ति होती है। लेकिन जो लोग चतुर्दशी तिथि का व्रत रखते हैं उनके लिए व्रत का खास नियम है।
जो लोग नरक चतुर्दशी यानी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का व्रत रखना चाह रहे हैं उन्हें 13 नवंबर दिन शुक्रवार को ही धनतेरस के दिन व्रत करना चाहिए यह शास्त्र सम्मत होगा। इसकी वजह यह है कि चतुर्दशी तिथि मासिक शिवरात्रि है। इसमें नियम यह है कि जिस दिन मध्यरात्रि में यानी निशीथ काल में चतुर्दशी तिथि हो उसी दिन व्रत रखना चाहिए। 14 नवंबर दिन शनिवार को मध्यरात्रि में अमावस्या तिथि रहेगी इसलिए अगर इस दिन व्रत रखेंगे तो यह अमावस्या और दीपावली के व्रत के रूप में मान्य होगा।
धनतेरस से दिवाली तक प्रमुख तिथियां :-
13 नवंबर को कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी यानी धनतेरस
13 नवंबर को धनतेरस के साथ हनुमान जयंती भी
13 नवंबर को कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मासिक शिवरात्रि व्रत
14 नवंबर को नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी स्नान पूजन
14 नवंबर को दिवाली, लक्ष्मी पूजन मुहूर्त